Friday 17 August 2012

मेरी पहचान


जिन्दगी को जीने की 
तमन्ना लिए
चली जा रही थी मैं

सोचती थी

जिन्दगी
जीना है तुझे, मुझकों
पाना है तेरी मंजिल को
बस थोड़ी सी परेशानी होगी मुझे
तुझे जीने में
क्योंकि
कुछ व्यर्थ आवश्यकताओं को 
पूरा करने के लिए
फैलाना पड़ेगा हाथ मुझे
आभावों से घिरे गांव में
माना कि
मुझे जीनें पर 
बनेगी मेरी पहचान
पर मिट न जाए कहीं पहले ही
वास्तविकता की
तूफानी लहरों में फंसकर
जिन्दगी से परे
मेरी पहचान।
                                   - उर्वशी उपाध्याय

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