Sunday 22 September 2013

डेंगू का उपचार एक्यूप्रेशर विधि से

पिछले कई वर्षों की भांति इस वर्ष भी डेंगू का कहर समाज को डराने लगा है। गत वर्ष देश में डेंगू के 50 हजार से अधिक दर्ज मामले सरकारी अस्पतालों के हैं, जिनमें निजी अस्पतालों के मामले शामिल नहीं हैं। मात्र इलाहाबाद में ही 2012 में लगभग 25 मामले प्रकाश में आये जिनमें 4 की मृत्यु समय पर रोग की पहचान या उपचार न हो पाने के कारण हो गई थी। यह तो नहीं कहा जा सकता कि डेंगू लाइलाज है परन्तु यह अवश्य है कि इसकी जानकारी देर से हो पाती है और प्लेटलेट चढ़वा पाने में देरी के कारण अक्सर यह रोग जानलेवा साबित होता है।
सामान्य सा लगने वाला बुखार यदि बदलते मौसम में आया है तो हमें अधिक सतर्क रहने की आवश्यकता होती है। डेंगू के संक्रमण के लगभग चार-पॉच दिनों के बाद डेंगू के लक्षण प्रकट होते है। अत: जॉच आदि के दौरान लगने वाला समय मरीज के लिये खतरनाक स्थिति पैदा कर सकता है ऐसी परिस्थितियों में हमें हमारा प्रतिरक्षा तंत्र मजबूत बनाये रखने और बाह्य संक्रमण से रक्षा करने के लिये अपनी शरीर की आंतरिक ऊर्जा को पुष्ट करने की आवश्यकता है। शरीर की इसी ऊर्जा को पहचान कर डेंगू जैसी भयावह बीमारी से निपटने के लिये एक्यूप्रेशर संस्थान इलाहाबाद ने तमाम शोध किये और साथ ही कई असाध्य रोगों से ग्रस्त रोगियों के साथ ही डेंगू के कई मरीज स्वास्थ्य लाभ प्राप्त कर सके हैं।
पंचतत्व सिद्वांत पर आधारित एक्यूप्रेशर की तमाम प्रचलित धाराओं के साथ आयुर्वेद के दस द्रव्यों (आकाश, वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी, काल, दिशा, मन, आत्मा, तम) और शरीर क्रिया विज्ञान के वर्तमान स्वरूप के समन्वय द्वारा तैयार आयुर्वेदिक एक्यूप्रेशर श्री जे.पी. अग्रवाल के संरक्षण में अनेक असाध्य एवं संक्रामक कहे जाने वाले रोगों में कारगर साबित हो रही है।

विशेषज्ञ के नजरिये से
संस्थान के वरिष्ठ प्रवक्ता एवं संजय गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान, लखनऊ में हृदयरोग विभाग में शोध सहायक डा0 बृजेन्द्र पाण्डे के अनुसार कुछ सामान्य लक्षणों को देखते हुए डेंगू का अन्दाजा लगाया जाता है जो कि जॉच के बाद ही स्पष्ट हो पाता है। संक्रमण के कारण रक्त में मौजूद प्लेटलेट की संख्या बहुत तेजी से घटने लगती है और डेंगू वायरस के प्रभाव के कारण बनने की प्रक्रिया बन्द हो जाती है। प्लेटलेट दरअसल रक्त में थक्का बनाने वाली कोशिकायें हैं जो लगातार बनती और नष्ट होती रहती हैं। यह कोशिकायें रक्त में एक से तीन लाख की संख्या में पाई जाती हैं। इन प्लेटलेट के माध्यम से शरीर में मौजूद छोटी छोटी रक्त नलिकायें स्वस्थ हो जाती है और प्लेटलेट के थक्का बनाने की प्रक्रिया से रक्तस्राव रोकना संभव हो पाता है। जब इनकी संख्या तीस हजार से कम हो जाती है तो शरीर के अन्दर रक्तस्राव होने लगता है जिससे रक्त मल, मूत्र, नाक कान से बाहर आने लगता है। कई बार रक्तस्राव शरीर के आंतरिक भागों में होता है जिससे बैंगनी रंग के धब्बे त्वचा पर दिखायी देता है। यह स्थिति अक्सर अनदेखा करने के कारण जानलेवा साबित होती है।
अगर कुछ मलेरिया जैसे लक्षण बदलते मौसम में नजर आयें तो आवश्यक है कि आप तुरन्त सतर्क हो जायें और एक्यूप्रेशर उपचार का लाभ प्राप्त करें। जॉच की प्रक्रिया लम्बी हो सकती है परन्तु एक्यूप्रेशर की समयपूर्व रोग को पहचानने की क्षमता आपको रोग की आक्रामकता से बचा सकते है। मैं स्वयं कई बार इस उपचार का लाभ ले चुका हूँ और इसकी क्षमता पर मुझे कोई संदेह नहीं है।

कारण-
1. एसिड एजिप्ट मात्र मच्छर के काटने से होता है
2. यह मच्छर आमतौर पर दिन में काटते हैं।
3. लक्षण देर से प्रकट होना इस रोग को जानलेवा बना देता है।
4. डेंगू का संक्रमण एक से दूसरे को नहीं होता परन्तु उस मच्छर द्वारा हो सकता है जिसने संक्रमित व्यक्ति को काटा है।
5. डेंगू मच्छर गंदे या साफ रुके हुए पानी में पैदा होते है।

लक्षण-
1. कमजोर प्रतिरक्षा तंत्र (जो लोग अक्सर बीमार होते हों) वाले लोगों में जल्दी प्रकोप हो सकता है।
2. कंपकंपी के साथ तेज बुखार आता है।
3. इसका बुखार बदलते मौसम में खासतौर पर बरसात के आस-पास होता है।
4. प्रत्येक अंग, मांसपेशियां एवं हड्डियों तक में असह्य पीड़ा।
5. सिर दर्द, गले में दर्द के साथ कमजोरी।

एक्यूप्रेशर के नजरिये से:
श्री जे0पी0 अग्रवाल जी ने बताया कि एक्यूप्रेशर संस्थान द्वारा त्रिदोष, धातु, मल आदि के आयुर्वेदिक विश्लेषण को आज की प्रचलित विधा के नजर से विश्लेषण करते हुए हॉथ एवं पैर के कुछ बिन्दुओं पर दबाव देकर उपचार किया जाता है जिसके लिये छोटे छोटे मैगनेट का प्रयोग किया जाता है। उपचार ऊर्जा पर आधारित है अत: औषधि का प्रयोग नहीं किया जाता इसलिये साइड इफेक्ट भी नहीं होता।
डेंगू संक्रामक रोग है जो कि एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को नहीं होता परन्तु डेंगू वायरस के वाहक एसिड एजिप्ट, मच्छर के काटने या डेंगू संक्रमण से ग्रस्त किसी व्यक्ति के बाद स्वस्थ व्यक्ति को सामान्य मच्छर के काटे जाने से हो सकता है। इस प्रकार के रोगों में लाल एवं श्वेत रक्तकण और प्लेटलेट आदि शरीर के चयापचय सम्बन्धी तत्व प्रभावी होते हैं। प्रारम्भ में तीव्र कंपकपी के साथ ज्वर आना, हॉथ पैर में तीव्र वेदना, चेहरा रक्तिम एवं नेत्र लाल रहते हैं। हॉथ पॉव की त्वचा पर लाल रक्त के निशान आ जाते है। नाक एवं हॉथों से रक्त स्राव हो सकता है। यह स्थिति रोग की गंभीरता की परिचायक है। 
इसका उपचार आयुर्वेदिक एक्यूप्रेशर के दृष्टिकोण से किया जा सकता है। डेंगू की अवस्था में निर्धारित बिन्दु पर उपचार देने से प्लेटलेट की संख्या में वृद्वि होने लगती है जिसके लिये रक्त में पित्त की मात्रा को कम करके और कफ की मात्रा को बढ़ाकर उपचार दिया जाता है जैसे जैसे तापमान कम होने लगता है प्लेटलेट की संख्या तेजी से बढ़ने लगती है। साथ ही संक्रमण निकालने और रोगी का प्रतिरोधी तंत्र मजबूत करने के लिये भी बिन्दु प्रयोग किये जाते हैं। एक्यूप्रेशर संस्थान इलाहाबाद में इस विधि से नि:शुल्क उपचार दिया जाता है जिसकी अनेक शाखायें अन्य शहरों में भी उपलब्ध हैं जहॉ उपचार प्राप्त किया जा सकता है। समुचित स्वास्थ्य लाभ के लिये बिन्दुओं का सही चयन एवं प्रयोग आवश्यक है। 


उपचार प्रबन्ध 
काला गोला - मैगनेट का पीला भाग
सफेद गोला - मैगनेट का सफेद भाग

























1- Both RF 4th Spr- 2,3,4,7 sed. 5,6 tone 
2- Lt Thumb all LVM - 0 tone 9 sed.
3- Rt Thumb 1/2 LHM - 3,4 sed. 5,6 tone 
4- Both SF 'V' Jts. - 3,4 sed. 5,6 tone
5- Rt RF 9th Spr - 3,4 sed. 5,6 tone
Lt RF o Spr -  3,4 sed. 5,6 tone



                                                                                                       - उर्वशी उपाध्याय