Monday 13 August 2012

एकता


सपनों का महल
पलको तले
बनता बिगड़ता शबनम की तरह
बूंद बूंद बन
टपकता जा रहा था
एक राही के मन
जिसका,
कोई मजहब कोई ईमान नहीं था
धर्म ग्रंथ एक थे
कोई 'गीता' कोई 'कुरान'नाहीं था
हां एक धर्म था
भाईचारे का
एकता और रक्त बंधन का
यादें थी किसी गम की
आभास मधुर क्रंदन का
छाई मन में कुरान की बातें
याद आयी गीता की वाणी
मक्का मदीना याद आया
एहसास कभी वृंदावन का

                                                - उर्वशी उपाध्याय

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