Wednesday 5 June 2013

दुनिया की रचना

कहते हैं लोग
धरती के
विशालतम स्थलों पर
फैली दुनिया
सुन्दर है / स्वच्छ है
आडम्बरों से दूर
यह
बहुत बड़ी है,

प्रबल है चाह
भावनाओं में बल है
इच्छाएं / कल्पनाएं
सभी कुछ,
हमारे
मर्म से जुड़ी हैं,

कोशिशों का संसार है
विकास है / विस्तार है
अह्लादित संसार की..
कर्तव्य की.. अधिकार की..
हर अनुभूति बड़ी है,

सब सच है
पर,

वो लोग,
यह मानने से
इन्कार नहीं करते
कि,
दुनिया की रचना ही
दुनिया के सामने
काल की तरह
मुंह बाए खड़ी है।
                                    - उर्वशी उपाध्याय

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