जिन्दगी को जीने की
तमन्ना लिए
चली जा रही थी मैं
सोचती थी
जिन्दगी
जीना है तुझे, मुझकों
पाना है तेरी मंजिल को
बस थोड़ी सी परेशानी होगी मुझे
तुझे जीने में
क्योंकि
कुछ व्यर्थ आवश्यकताओं को
पूरा करने के लिए
फैलाना पड़ेगा हाथ मुझे
आभावों से घिरे गांव में
माना कि
मुझे जीनें पर
बनेगी मेरी पहचान
पर मिट न जाए कहीं पहले ही
वास्तविकता की
तूफानी लहरों में फंसकर
जिन्दगी से परे
मेरी पहचान।
- उर्वशी उपाध्याय
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