सपनों का महल
पलको तले
बनता बिगड़ता शबनम की तरह
बूंद बूंद बन
टपकता जा रहा था
एक राही के मन
जिसका,
कोई मजहब कोई ईमान नहीं था
धर्म ग्रंथ एक थे
कोई 'गीता' कोई 'कुरान'नाहीं था
हां एक धर्म था
भाईचारे का
एकता और रक्त बंधन का
यादें थी किसी गम की
आभास मधुर क्रंदन का
छाई मन में कुरान की बातें
याद आयी गीता की वाणी
मक्का मदीना याद आया
एहसास कभी वृंदावन का
- उर्वशी उपाध्याय
gud1 mom........
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